रात के 2 बज रहे थे। आकांक्षा और जानवी ने अपना प्रोजेक्ट निपटा कर वो किताबे लेकर बैठी जो वो दोनों इंस्पेक्टर दुबे से लाई थी। उन दोनो ने जमीन मे अचानक उठे कंपन महसूस किया।
जानवी ने आकांक्षा का हाथ पकड़कर पूछा, "अक्षु क्या तूने भी वाइब्रेशन कंपन फील की?"
" हां यार.... धरती में एक अजीब सा ही कंपन महसूस हो रहा है।"
जानवी उसका हाथ छोड़कर बेड के नीचे छुप गयी।
"अक्षु, तु भी नीचे आ जा।कहीं भूकंप तो नहीं आ रहा? मुझे सच में बहुत डर लग रहा है। जब से यह वैंपायर के बारे में सुना है, तब से छोटी छोटी चीजों का डर लगने लगा है .... और तू भी कहां आधी रात को यह किताबें पढ़ा रही है।"
"ड्रामा बंद कर और और चुपचाप ऊपर आकर बैठ जा। तू ना चुप करके पढ़.... मुझे भी तो नींद आ रही है। मैं भी तो पढ़ रही हूं ना?"
जानवी ने बेड पर बैठते हुए कहा, "अगर इतनी शिद्दत से रात को बैठकर सिलेबस की बुक्स पढ़ती ना, तो टॉप कर लेती।"
" तू यह जींस टॉप को छोड़ और चुपचाप बुक पढ़"
" अक्षु कभी सोचा है, ये किताबें इतनी मोटी क्यों होती है? पहले तो वह प्रोजेक्ट कंप्लीट किया और फिर तूने मुझे इन किताबों में लगा गया। इनमें भी बकवास के अलावा और कुछ नहीं लिखा।"
आकांक्षा ने कहा, "हां तो करना पड़ेगा। एक तेरी हो गई और एक मेरी हो गई। बची हुई ये किताब हम दोनों मिलकर आधा-आधा पढ़ लेंगे। वैसे भी ये तीसरी किताब ज्यादा मोटी नही है। मेरी तो कंप्लीट होने वाली भी है।"
" कंप्लीट तो मेरी भी होने वाली है। पर इन बुक्स में कुछ नहीं है..." जानवी ने पन्ने बदलकर बोला, "इनमें वही लिखा है, जो हमें गुप्ता अंकल ने बताया था। इससे अच्छा उनसे पूछ लेते कि इस तीसरी किताब में क्या है ?"
"ला वो किताब तो दे ... नाम क्या है इसका?" आकांक्षा ने किताब का शीर्षक पढा, "पहला पिशाच"
"हो सकता है इस बुक मे अंदर उस व्यक्ति के बारे में लिखा हो, जो दुनिया का पहला पिशाच हो। सुनने मे तो काफी इंटरेस्टिंग लग रहा है।"
"ठीक है,फिर साथ पढ़ते है।" आकांक्षा वो किताब पढ़ने लगी, "वैसे तो पिशाच के बारे में कही सटीक जानकारी नहीं मिलती, लेकिन इतिहास में कई सारी प्राचीन पौराणिक कथाएं दर्ज हैं, जो उनके होने या न होने की ओर इशारा करती हैं। इसमें जो सबसे ज्यादा प्रचलित कथा है। उसके अनुसार पिशाच शुरुआत से ही पिशाच नहीं था.... बल्कि, वह हमारी और आपकी तरह एक आम इंसान था ....... जिसका नाम था एमब्रोगिओ। उसका जन्म इटली में हुआ था और वह एक रोमांच पसंद शख्स था। इसी गुण के कारण वह अपनी किस्मत आजमाने समुद्र के रास्ते ग्रीस पहुंच गया।"
जानवी ने बीच मे बोला,"ओ वाओ. .. मुझे भी ग्रीस जाना है।"
" तू चुप करके सुनेगी .... या फिर एक काम कर तू ही पढ़ ले।" गुस्से में आकांक्षा ने वह किताब जानवी को पकड़ा दी।
"आगे बढ़ते-बढ़ते वह ग्रीस के डेल्फी शहर जा पहुंचा। वहां सूरज के देवता अपोलो का घर था। इस दौरान एमब्रोगिओ अपोलो के घर में घुस गया और वहां उसे सेलेना नाम की एक दासी पसंद आ गई.....आँखें चार हुईं तो बात शादी तक पहुंच गई।" जानवी किताब पढ़ना छोड़कर बीच मे जोर जोर से हंसने लगी, "ओ माय गॉड..! प्यार एंड ऑल. ...!"
आकांक्षा उसकी पर गुस्सा हो गयी और उस से वो किताब छीन ली।
"तू यह किताब मुझे दे ... वरना तू साथ साथ में अपनी कॉमेंट्री करेगी और सारा इंटरेस्ट खराब कर देंगी।"
" हां यार अब तो मुझे भी बहुत इंटरेस्ट आ रहा है ले तू पढ़ अच्छे से.... मैं तो आराम से सुनूंगी। तू 2 मिनट रुक मैं पॉपकॉर्न लेकर आती हूं।"
जानवी जल्दी से जाकर अपने हाथ में चिप्स और पॉपकॉर्न लेकर आई। आकांक्षा चिप्स खाते हुए किताब को पढ़ने लगी।
"जब एमब्रोगिओ और सेलेना को एक दूसरे से प्यार हो गया तो अब दोनों शादी करना चाहते थे। मगर जब अपोलो को इस बारे में पता चला कि एक इंसान उनकी दासी को भगाने की कोशिश कर रहा है, तो उन्होंने एमब्रोगिओ को श्राप दिया कि अगर वह सूर्य के प्रकाश में आएगा, तो जल कर राख हो जाएगा। इस कारण गुस्से में एमब्रोगिओ पाताल के देवता हेडिस के पास जा पहुंचा..... क्युकी पाताल मे सूर्य की रोशनी नही जाती। लेकिन वहां हैडिस ने एमब्रोगिओ की आत्मा को अपने पास कैद कर लिया। इस दौरान अपोलो की बहन अरटेमिस ने आकर उसकी मदद की..... उसने एमब्रोगिओ को वहां से आजाद करवाया।"
उसे सुनकर जानवी का मुँह उतर गया।
"बेचारा.... प्यार करने की ये सज़ा....!"
आकांक्षा ने आगे पढा, "हालांकि, किसी वजह से अरमैटीस ने एमब्रोगीऔ को श्राप दे दिया और वह एमब्रोगिओ को श्राप से नहीं बचा सकी। इस श्राप के तहत अगर उस पर चांदी से बनी किसी भी वस्तु से वार किया जाएगा, तो उसकी मौत हो जाएगी! हालांकि, बाद में अरटेमिस को एमब्रोगिओ की कहानी के बारे में पता चला, तो उसे उस पर तरस आ गया। उन्होंने उसे वरदान दिया कि वह सदा अमर रहेगा, साथ ही उसे बेशुमार ताकत और शिकार करने की कला भी वरदान के तौर पर दी गई। अरटेमिस ने एमब्रोगिओ को बताया वह कि सेलेना का खून पीकर उसे भी अमर कर सकता है। इसके अलावा अगर वह किसी अन्य इंसान का भी खून पीता है, तो वह उसी की तरह पिशाच बन जाएगा। अरटेमिस की बात मान कर एमब्रोगिओ ने सेलेना को भी पिशाच बना दिया।
फिर यह दोनों इटली के शहर फ्लोरेंस चले गए, जहां उन्होंने पिशाचो के पहले वंशज को जन्म दिया।"
उसे पढ़कर जानवी और आकांक्षा एक दूसरे की तरफ देखने लगी।
आकांक्षा– "अगर इस स्टोरी के हिसाब से चलें तो एक पिशाच किसी इंसान को मार भी सकता है और वह चाहे तो उसे भी काटकर पिशाच बना सकता है।"
"अब तो मुझे और भी डर लग रहा है। जंगल में जो पिशाच है, वह एमब्रोगीऔ है क्या ? यार इटली से शिमला क्यों आया ? माना शिमला अच्छी जगह है.... पर इटली तो बहुत ही ज्यादा खूबसूरत हैं।"
"या हो सकता है कि वह कोई और पिशाच हो। ओवर ऑल इस बुक से दो बातें पता चली है.... पहली यह कि कोई भी पिशाच है, वह सूर्य की गर्मी को झेल नहीं सकता... जैसा कि अपोलो ने उसे श्राप दिया था। और अगर अरमेटिस् के श्राप के हिसाब से चलें, तो किसी भी पिशाच को चांदी से बने हुए हथियार से मारा जा सकता है।" आकांक्षा ने निष्कर्ष निकाला।
"पर मारेगा कौन ? यह तो वही बात हो गई ना... जैसे कि चूहों ने प्लान किया था कि बिल्ली के गले में घंटी बांध देंगे,, ताकि पता चल जाएगा कि बिल्ली आ रही है। पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन।"
आकांक्षा– "बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा, इसका तो नहीं पता। लेकिन इतना जरुर पता चल गया कि इस बिल्ले के गले में भी घंटी बांधनी है और वह भी चांदी वाली .... चल अब सो जाते हैं। सुबह उठकर सोचते हैं कि क्या करना है?"
"थैंक गॉड अक्षु... तुझे याद तो आया कि सोना भी है.... और हम क्या करेंगे ? हम कुछ नहीं करने वाले। तू यह मत सोचना कि तेरे पास थोड़ी बहुत पावर है, तो मुंह उठाकर जंगल में चली जाएगी। देख मैं नहीं जाने वाली तेरे साथ कहीं पर भी.... जंगल तो बिल्कुल नही।"
आकांक्षा ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "तुझे लिए बिना तो बिल्कुल नहीं जाने वाली हूं मैं। जाऊंगी तो तुझे साथ लेकर जाऊंगी।"
जानवी ने सारी किताबे बेडसाइड टेबल पर रख दी और फिर दोनों सोने चली गई।
★★★★
सुबह 6 बजे के छः बज रहे थे।
जंगल में पेड़ों का घना साया था. ... इतना कि सूरज की एक किरण भी जंगल के अंदर नहीं पड़ती थी। यही वजह थी कि वहां पर पिशाचों का डेरा हो चुका था। भले ही जंगल में सूरज की एक किरण भी ना पड़े, लेकिन जंगल के बाहर सूरज की पहली किरण दस्तक दे चुकी थी।
जंगल के अंतिम छोर पर एक आदमी जा रहा था। उसकी खुशबू जंगल के बीचो बीच खड़े रीवांश तक पहुँची। रीवांश ने वही से अपना हाथ लम्बा करके उस आदमी को जंगल के अंदर खींच लिया।
वह आदमी से डर से चिल्लाया, "बचाओ. ... कोई मुझे बचाओ। मै....मैं जंगल के अंदर कैसे आ गया?" वो आदमी बुरी तरह घबरा रहा था, "सच कहते हैं लोग इस जंगल में पिशाच रहते हैं।"
वो आदमी जंगल के बाहर जाने के लिए इधर उधर बेतहाशा दौड़ने लगा। तभी अचानक रीवांश उसके सामने आ कर खड़ा हो गया।
"आप कितना भी चिल्लाइए। आपकी आवाज इन जंगलों से बाहर नहीं जाएगी।" वो उस आदमी के गर्दन के पास आकर उसके कान मे बुदबुदाया, "हमें माफ कर दीजिए... हमे बहुत भूख लगी है। भगवान आपकी आत्मा को शांति दे।"
रीवांश ने उस आदमी के शरीर के आखिरी बूंद खत्म होने तक उसका खून पीता रहा। अगले ही क्षण वो व्यक्ति मर कर नीचे गिर गया।
रीवांश ने अपने मुँह पर लगा खून पोंछते हुए कहा, "इन बीतें सालों में हम क्या से क्या हो गए है। कहाँ हम हमारी माँ के लाडले रीवांश हुआ करते थे.... और खून का एक कतरा देख कर ही डर जाया करते थे। आज उसी खून के प्यासे बन गये है। क्या वो चारों बोल रहे थे वो सच था। हमारी बचपन की एक भूल की हमें ये सज़ा मिलेगी हमने कभी नही सोचा था।" बोलते हुए रीवांश का ध्यान अपने हाथ की तरफ गया, जो कि लाल पड़ गया और हथेली के पिछले हिस्से पर बहुत सारे फफोले निकल आए थे... मानो वहाँ किसी ने उबला हुआ पानी डाल दिया हो।
"लगता है बाहर सूरज निकल आया है। इस आदमी को खींचने के लिए जब हमने अपना हाथ बढ़ाया, तो हमारा हाथ भी जल गया। बहुत जलन हो रही है इस पर और दर्द भी.... पर इससे भी ज्यादा दर्द और जलन तो हम पिछले कई सालों से भुगत रहे हैं। एक ऐसा दर्द... जो अनंतकाल तक रहेगा।"
★★★★★
सुबह के 11 बज रहे थे। आकांक्षा कमरे मे जानवी का इंतेजार कर रही थी, जबकि वो अंदर बैठ कर अपने मोबाइल मे गेम्स खेल रही थी।
आकांक्षा ने जानवी को आवाज लगाई, "जल्दी कर ना जानवी.... चल चलते हैं। पता नही इतनी देर से घर के बाथरूम में कर क्या रही है?"
"देख अक्षु मैं नही जाने वाली तेरे साथ किसी भी जंगल में....! भाड़ मे जाए ये पिशाच..!" जानवी अंदर से चिल्लाई।
"एक तो इसकी नौटंकी कभी खत्म नहीं होती।" आकांक्षा बाथरूम के बाहर आकर बोली, "हम जंगल नहीं जा रहे हैं मेरी मां.... भूल गई दुबे अंकल को बोला था कि 1 दिन बाद उसी वक्त पर उन्हें वह किताबें लौटानी है। 11:00 बज रहे हैं। पुलिस स्टेशन पहुंचेंगे... उनसे मिलेंगे ..... तब तक 1 आराम से बज जाएंगे। अब चुपचाप बाहर निकल।"
"चलो अच्छा है... जल्दी से ये पिशाच वाली किताबों को उनको दे कर आते हैं। जब से इनको देखा है, तब से मेरे दिमाग का दही हो गया है।" जानवी बाहर आकर बोली।
"तो उसी दही का रायता बनाकर पी ले। लेकिन जल्दी कर....हमें लेट हो रही है।"
जानवी और आकांक्षा जल्दी से उन तीनो किताबों को लेकर पुलिस स्टेशन पहुँची। उनके चेहरे पर निराशा के भाव थे क्योंकि उन्हें उस किताब में कुछ खास नहीं मिला था।
★★★★
वो दोनो पुलिस स्टेशन पहुँची। जाते ही उनकी नजर सामने की डेस्क पर बैठे इंस्पेक्टर दुबे पर पड़ी, जो कि किसी से फोन पर बात कर रहे थे।
इंस्पेक्टर दुबे ने उन्हे देखकर उनकी तरफ हाथ हिला कर कहा, "हां इधर आ जाओ बच्चियों..... अच्छा सावंत मैं तुमसे बाद में बात करता हूं। देख लेना आसपास कुछ उस लड़की का सामान मिले तो...!"
जानवी उनके पास पहुँचकर बोली, "नमस्ते अंकल ...."
"हम आपके दिए हुए समय से पहले किताबे भी ले आये। थैंक यू सो मच अंकल! आपने हमारी हेल्प की।"
"तुम दोनों बैठो.... अगर कुछ रह गया है तो अभी देख लो। वापिस नहीं मिलने वाली है तुम्हें ये किताबें। मै अभी आता हूँ।" कहकर दुबे कुछ देर के लिए वहां से चले गए
उनके कहने पर आकांक्षा उन किताबों के पन्नो को जल्दी जल्दी पलट कर देखने लगी।
"अब क्या रह गया तेरा ?" जानवी ने उनकी तरफ मुँह बनाकर कहा।
"जो बुक तूने पढ़ी थी, उसे एक बार फिर से देख रही हूं। तू तो किताबों से वैसे भी बोर हो जाती है.... क्या पता कुछ रह गया हो।" पन्ने बदलते हुए आकांक्षा का ध्यान किसी चीज पर गया। उसने घबराते हुए कहा, "देख इसे.... इतनी इंपॉर्टेंट चीज को तू कैसे मिस कर सकती है जानवी?"
"सॉरी यार... पता नहीं मेरा ध्यान उसकी तरफ क्यों नहीं हो गया... और अच्छा ही हुआ जो नहीं गया। वरना मेरे को तो पूरी रात डर के मारे नींद भी नहीं आती। वैसे यह लिखा क्या है यहां पर?" जानवी ने वहाँ लिखे शब्द को पढ़ने की कोशिश की।
"तेरी आंखें तो खराब नहीं हो गई ना ? खून से किसी का नाम लिखा हुआ है। उस लड़के ने जरूर पिशाच को देखकर कुछ लिखा होगा। पर पढ़ने में नहीं आ रहा। ये नाम क्लीयर क्यों नही है।" आकांक्षा उसे पढ़ने के चक्कर में किताब के उस पन्ने को पूरी तरह इधर-उधर घुमा दिया। उसे देखते हुए अचानक उसका हाथ उस शब्द पर पड़ा और उसे छूते ही आकांक्षा की आंखें अपने आप बंद हो जाती है और उसे फिर कुछ अस्पष्ट दृश्य दिखाई देने लगे।
उसे उन दृश्यों को मे कुछ भी साफ नजर नही आया।
उन्हे देखते हुए आकांक्षा ने बन्द आँखो से बुदबुडाया, "राजकुमार रीवांश...!"
shweta soni
26-Jul-2022 07:20 PM
Nice
Reply
Art&culture
03-Jan-2022 11:57 PM
Very nice...!!
Reply
दीपांशी ठाकुर
20-Dec-2021 11:26 PM
नेक्स्ट पार्ट...
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